US joins Russia to vote against UN resolution on Ukraine war; India and China absant

अमेरिका ने रूस के साथ मिलकर यूएन प्रस्ताव के खिलाफ वोट दिया; भारत और चीन रहे अनुपस्थित

परिचय

संयुक्त राष्ट्र महासभा में हाल ही में यूक्रेन युद्ध को लेकर एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पर मतदान हुआ। इस प्रस्ताव का उद्देश्य रूस द्वारा यूक्रेन में किए गए सैन्य हमलों की निंदा करना और शांति प्रयासों को बढ़ावा देना था। हालांकि, इस प्रस्ताव पर मतदान के दौरान अमेरिका और रूस ने इसके खिलाफ वोट दिया, जबकि भारत और चीन ने मतदान से दूरी बनाए रखी। यह निर्णय अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और भू-राजनीतिक समीकरणों को नए सिरे से उजागर करता है।



संयुक्त राष्ट्र महासभा में मतदान का परिणाम

संयुक्त राष्ट्र महासभा में पेश किए गए इस प्रस्ताव को लेकर विभिन्न देशों की प्रतिक्रियाएँ महत्वपूर्ण रहीं। अमेरिका और रूस ने जहां इसके खिलाफ मतदान किया, वहीं भारत और चीन ने अनुपस्थित रहने का फैसला किया।

मतदान के प्रमुख बिंदु:

  1. अमेरिका और रूस: दोनों देशों ने प्रस्ताव का विरोध किया।
  2. भारत और चीन: दोनों देशों ने किसी पक्ष का समर्थन न करते हुए मतदान से दूरी बनाए रखी।
  3. अन्य देश: अधिकांश पश्चिमी देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया।

अमेरिका का विरोध क्यों?

अमेरिका ने इस प्रस्ताव का विरोध क्यों किया, यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। सामान्य तौर पर अमेरिका यूक्रेन का समर्थन करता रहा है, लेकिन कुछ रणनीतिक कारणों के चलते उसने इस बार रूस के साथ खड़े होने का फैसला किया।

संभावित कारण:

  1. राजनयिक जटिलताएँ: अमेरिका की नीति हमेशा यूक्रेन समर्थक रही है, लेकिन कुछ आंतरिक और बाहरी राजनयिक दबावों के कारण उसने इस प्रस्ताव का विरोध किया।
  2. रूस पर दबाव बनाए रखना: अमेरिका इस मुद्दे पर रूस के साथ टकराव तो चाहता है, लेकिन कुछ मामलों में उसे कूटनीतिक रूप से लचीला रहना पड़ता है।
  3. यूरोप और नाटो का प्रभाव: अमेरिका के इस कदम का प्रभाव नाटो देशों पर भी पड़ा है, क्योंकि वे यूक्रेन का समर्थन कर रहे हैं।

रूस का विरोध: अपेक्षित प्रतिक्रिया

रूस के इस प्रस्ताव के खिलाफ मतदान करने की उम्मीद पहले से ही थी। रूस का तर्क था कि यह प्रस्ताव पक्षपातपूर्ण है और पश्चिमी देशों द्वारा उसके खिलाफ एकतरफा कार्रवाई को बढ़ावा देने वाला है।

रूस की रणनीति:

  1. यूक्रेन युद्ध को आंतरिक मामला बताना: रूस इसे अपनी सुरक्षा और रणनीतिक हितों से जुड़ा मामला बताता है।
  2. पश्चिमी देशों की नीतियों का विरोध: रूस यह मानता है कि पश्चिमी देश लगातार उसके खिलाफ माहौल बना रहे हैं।
  3. अन्य देशों का समर्थन जुटाना: रूस भारत, चीन और अन्य देशों के समर्थन से पश्चिमी प्रभुत्व को चुनौती देना चाहता है।

भारत और चीन की तटस्थता

भारत और चीन ने मतदान से अनुपस्थित रहने का फैसला किया, जो उनके संतुलित कूटनीतिक रुख को दर्शाता है। दोनों देशों ने पहले भी यूक्रेन युद्ध को लेकर किसी एक पक्ष का खुला समर्थन करने से बचाव किया है।

भारत की स्थिति:

  1. गुटनिरपेक्ष नीति: भारत हमेशा से गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) का समर्थक रहा है और उसने इसी नीति के तहत वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया।
  2. रूस और पश्चिम के साथ संतुलन: भारत के रूस और अमेरिका दोनों के साथ अच्छे संबंध हैं।
  3. ऊर्जा और रक्षा आवश्यकताएँ: भारत अपनी ऊर्जा और रक्षा ज़रूरतों के लिए रूस पर निर्भर है, इसलिए वह उसके खिलाफ जाने से बचता है।
  4. शांति वार्ता का समर्थन: भारत हमेशा कूटनीतिक वार्ता के ज़रिए युद्ध समाप्त करने की बात करता रहा है।

चीन की स्थिति:

  1. रूस के साथ गठजोड़: चीन और रूस के संबंध मजबूत हैं, लेकिन चीन खुलकर रूस का समर्थन नहीं कर रहा।
  2. अमेरिका से प्रतिस्पर्धा: चीन अमेरिका से अपने आर्थिक और रणनीतिक हितों की रक्षा के लिए तटस्थ रुख अपनाता है।
  3. वैश्विक शक्ति संतुलन: चीन नहीं चाहता कि वह किसी एक पक्ष के साथ खड़ा होकर अपने दीर्घकालिक रणनीतिक लक्ष्यों को जोखिम में डाले।

वैश्विक प्रभाव और निष्कर्ष

यह मतदान अंतरराष्ट्रीय राजनीति में विभिन्न देशों के हितों और रणनीतियों को दर्शाता है।

संभावित प्रभाव:

  1. अमेरिका और रूस के बीच तनाव बढ़ सकता है।
  2. भारत और चीन अपनी स्वतंत्र कूटनीति जारी रखेंगे।
  3. यूक्रेन युद्ध को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मतभेद और गहरे होंगे।
  4. संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर प्रश्न उठ सकते हैं।

निष्कर्ष:

संयुक्त राष्ट्र महासभा में हुए इस मतदान ने वैश्विक राजनीति में बढ़ते ध्रुवीकरण को उजागर किया है। अमेरिका और रूस के एक साथ वोट करने का फैसला चौंकाने वाला है, जबकि भारत और चीन की तटस्थता उनकी संतुलित कूटनीति को दर्शाती है। आने वाले समय में यह देखा जाएगा कि इस युद्ध और इससे जुड़े कूटनीतिक समीकरण किस दिशा में जाते हैं।

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